भाग 2 ला संसारसार |
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१ |
(चाल या विरहा कां भीसी) |
माया मोह जगीं आवरेना । संसॄति पाश सरेना ।। माया ०।। ध्रु०।। |
धन सुतदारा गृह परिवारा । वाढविता हि पुरेना । माया ०।।१।। |
माझें माझें करितां जीवित । जाइ निघोनि उरेना । माया ०।।२।। |
वैराग्याचें नांव कशाला । क्षणभर तें हि ठरेना । माया ०।।३।। |
सुमति विवेका गांठ न जीवा । तॄष्णा ओढिति नाना । माया ०।।४।। |
सदुरुवांचुनि सोय न लागे । जीवा मार्ग कळेना । माया ०।।५।। |
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२ |
(चाल कवणे तुज गांजियलें) |
धन्य धन्य आजि सुदिन खास उगवला । |
भक्तिबळें सन्दुरुवर मजसि लाभला ।। धन्य ०।। |
संसारी राहुनि ती त्यजिली सुविवेक सुमति |
वैराग्यें ये जाग़ृति । योग हा भला ।। धन्य ०।।१।। |
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३ |
(चाल पांडवा सम्राट पदाला) |
त्रस्त झालों या जगीं मी कुमतिनादें गुरुवरा । |
वासनांचा जोर कांहि सुचुं देना नरा । |
सुमतिला मी सव्दिवेका दूर झालों हा खरा । |
शांति नाहीं सौख्य नाहीं नाहीं काहीं आसरा । |
शरण आलो चरणिं आतां ठाव दे या पामरा । |
मार्ग दावी पार लावी किंकरा भवसागरा ।।त्रस्त ०।।१।। |
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४ |
(चाल धन्य जाहला तुम्ही) |
धन्य जाहलों जगीं धन्य जाहलो । सद्रुरुवर चरणकमल विमल लाभलों ।।धन्य ०।। |
धन्य धन्य वैराग्याचे बळ अपूर्व साचे । सुमति विवेका तेणे आज पावलों ।। धन्य० ।। |
भक्ति मार्ग सोपा उत्तम संसारी या जीवा । भवपरिहार मातॄचरणतत्व उमजलों ।।२।। |
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५ |
(चाल अंकित पदांबुजाची दासी) |
गुरुवर पदांबुजा घ्या आधीं । निशिदिनीं हरे सकळाधि ।। गुरु ०।। ध्रु०।। |
घोर भवाटवि दुर्गम वाटे । विषय जाळ बहु बाधि । गुरु ०।।१।। |
गुरुवर जगतीं तारक सकळां तोचि हरील उपाधी । गुरु ०।।२।। |
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६ |
(चाल कवणें तुज गांजियलें) |
धन्य धन्य खचित पूर्वपुण्य उगवलें । |
सद्रुगुरु वर चरण कमल सहज लाभलें ।। धन्य ।। |
तृष्णामय संसारी । तळमळ ही सर्व परी |
शांति मिळेना क्षणभरी । कष्ट साहिले ।। धन्य ०।।१।।; |
घडंता गुरुचरणसंग । सुविचारी नित्य दंग |
शांत होय अंतरंग । क्लेश संपले ।। धन्य ०।।२।। |
अज्ञानावृत्त नयनीं । ज्ञानांजन लेववुनी |
दिव्य दॄष्टि मज देउनि । सार दाविले ।।धन्य ०।।३।। |