भाग 2 ला संसारसार |
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१ |
( चाल बसंती बघुनि मेनकेला ) |
मानव देहाची प्राप्ती । जन्मापासुनि भरणावधि मज गमते कष्टद ती ।। |
गभीं क्लेश असहय किती । आधिव्याधी रात्रंदिन या देहावर टपती ।। |
सोसुनि अवधीं कष्टतती । दुर्बुध्दीनें मोहित होउनि बुडतो तो अंती ।। |
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२ |
(चाल राम स्मरावा राम सदोदित) |
दुर्लभ हा नरदेह खरोखर हा नरदेह ।। |
सुविवेकाने होय अमृतमय । साधुनि भक्ति उपाय खरोखर ०।।१।। |
गर्व अहंता वर्तनि येतां । तोचि विघातक होय । खरोखर ०।।२।। |
असक्त राहुनि करि संसारा । ईश पदीं रत होय । खरोखर ०।।३।। |
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३ |
(चाल त्यजि भक्तासाठीं लाज) |
मन चंचल हें अनिवार । गति न कळे कवणा पाही ।। ध्रु ०।। |
वासना धरुनियां नाना । राबवी दशेंद्रिया सेना |
अनुभवी दुख सुख नाना । परि न कुठें स्थीर कधिं राही ।।१।। |
वारयाची करवे मोट । उदधीचा करवे घोट । |
मन आकळणें ही गोष्ट । अति अवघड विव्दानां ही ।। मन ०।। |
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४ |
(चाल वसंती बघुनि मेनकेला) |
सदा या मनुजाला चित्तीं । दुर्बुध्दीचे अंकुर हे वसती ।। |
त्यांच्या भिन्नवृत्ति उठती । बरे काय वाईट काय ती जाणिव त्या देती ।। |
सदबुध्दीला सारुनि ती । दुबुध्दी व्यवहार कराया प्रेरक ती होती ।। |
झगडा त्यांचा हा ऐसा । नित्य चालतो परि उमजेना मनुजा तो कैसा ।। |
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५ |
(चाल भुवर्णकेतकी परि जो ) |
दुर्बुध्दीची उर्मी उपजे अहंपणा तो अंगिं जडे । |
माझ धन परिवारहि माझा मनाला केविं पडे । |
सोडुनि देउं कैसे यातें वाटे चित्ता अवघड तें |
क्षणोक्षणीं हे विचार उठती कांहि सुचेना मन अडतें ।।१।। |
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