चाल-तुझे रूप चित्ती राहो |
जडो छंद नामाचा तव |
हृदयी वसो मूर्ती |
दैनंदिन करु व्यवहारी |
मिळो मन:शांती |
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तुझे नाम कलिमन दहना, हरति पापराशी |
नित्य जपति जे त्यांची तूं काळजी वहासी |
सर्व भोग ऐश्वर्याचे, तू तयास देसी |
अंती तया पावन करूनी, निजपदासी नेसी |
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जगज्जननी स्मरति जे तुज, जगति तेचि धन्य |
जीणे साथ होई त्यांचे, होती लोकमान्य |
उणे काय ऐश्वर्याला? भाग्यवंत होती |
तुझया कृपे आश्रय, इतरा निजपदासी देती |
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तुझी कृपा मी जगदंबे, सर्व अर्थ साधी |
सर्व मगंला मांगल्ये, त्रयंबकाचे गौरी |
महालक्ष्मी नारायणी तुज शरण, चरणवंदि |
कृपा करुनि पावन करि मज, ठाव दे पदासी |
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अंबिके! तुझया सेवेचा सदानंद मेवा |
पुन्हा पुन्हा मिळण्यास्तव मन पुर्नजन्म यावा |
नित्य तुला ध्यावे गावे, स्मरावे उदंड |
तुझ्या पदि विरूनी जाता मिळो देहदंड |
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राग-चंद्रकंस ताल नाटकी त्रिताल चाल-हसले मनि चांदणे |
कोण वाचविल दुजी तुझ्याविन |
अंति ये धाऊनी । भवानी तुजवणि मज ना कुणी |
धाव घे धाव कुलस्वामिनी ।। धृ ।। |
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माय बाप मज बंधु न सोडवी |
पुत्र पुत्री कामिनी |
गुंतून गेलो तुला विसरलो |
मनी खंत ही सलते । भवानी ।। १ ।। |
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घालविले वय मौजेखातर |
तन मन धन वेचले |
धर्म कर्म यम नियमाचेही, बंधन नामानिले |
स्वहित विसरलो गुरुजन दुखऊनी |
अंति दया दाऊनी । भवानी ।। २ ।। |
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हीन पतित मी बहु अपराधी, दुराचारी दुर्मती |
मी अधमाहुन दुष्ट अधम परि, शरण तुला शेवटी |
करि मज पावन दीन दयाधन |
अंती पस्ताउनी । भवानी ।। ३ ।। |
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नको अव्हेरूस मज जगदंबे माय कुलस्वामिनी |
मी शरणागत तव पदि अवनत घे मज स्विकारूनी |
कुपुत्र जरि मी, तू न कुमाता ख्याती तव त्रिभुवनी |
भवानी । तुजविण मज ना कुणी ।।४।। |
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तुझ्या कृपेस्तव हृदय तळमळ मीन जळविण जसे |
आर्त माझिया भाव मनातील समजावू तुज कसे |
घे जाणुनी तू हे करूणामयी हृदयी मम प्रकटुनी |
भवानी तुजविण मज ना कुणी ।।५।। |
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मला न ठाऊक मंत्र तंत्र अन स्तुति स्तवने तव पुजा |
भाव भक्ति मम मानी ना उपजे मी नच सेवक तुझा |
कशि घडावी कृपा भगवती? संभ्रम पडतो मनो |
भवानी। तुजविण मज ना कुणी ।।६।। |